मेरे
आने और तुम्हारे जाने के बीच
बस चंद
कदमों का फासला रहा
न मै
जल्दी आया कभी
न कभी
तुमने इंतज़ार किया
ये
फासला ही तो था
जिसे
हमने
संजीदगी
और ईमानदारी के साथ निभाया
फासले को
सिमटने
नहीं दिया
और न ही
मिटने
दिया
हम
जुड़े रहे
फासले
के साथ
बावजूद
तमाम
मुश्किलों और तकलीफ़ों के
वो
जिंदा रहा हमारे बीच
फासला
बनकर
और हम
मरते रहे, मरते रहे, मरते रहे
अपने–अपने अहम के साथ ...
सुन्दर भाव-
ReplyDeleteआभार नादिर साहब-
कभी कभी ये फांसला जीवन भर नहीं पार होता ... चाहे दो कदम का ही क्यों न हो ...
ReplyDeleteदिगम्बर जी और रविकर जी बहुत शुक्रिया आप दोनों का कृपया स्नेह बनाये रखें ।
ReplyDeleteHum apne aham k karan jhukna pasand nhi karte aur waqt nikal jaane ke baad hume kewal pachtaana padta h..
ReplyDeleteBadhiya likha h aapne..
शुक्रिया मन्टू जी अपने रचना के भाव को सराहा
Deleteआभार....