रेगिस्तान में
रेत की चादर की तरह
मेरी ज़िंदगी भटकती रही
कभी यहाँ, कभी वहाँ
मैं ढूँढता रहा अपना ठिकाना
हवा बहा ले गई
जब चाहा जिधर चाहा
मेरा अपना ठिकाना
कुछ भी नहीं
मगर मालूम है मुझे
हर चीज़ का
अपना वज़ूद होता है
फिर चाहे नागफनी हो,
या हो नीम !
कोहिनूर हो,
या हो रेत !
बिना वजह
कुछ भी नहीं होता
गरीब न होते
अमीर को कौन पहचानता ?
प्यास न होती
पानी का महत्व कौन जानता ?
प्यार न होता
दिल की धड़कनें कौन सुनता ?
तुम न होते
प्यार क्या है, मैं कैसे जानता ?
बिना वजह
कुछ भी नहीं होता
कुछ होता है
क्योंकि
वजह होती है ।
वह नादिर साहब ,क्या खूब फ़रमाया है ***** तुम न होते
ReplyDeleteप्यार क्या है, मैं कैसे जानता ?
बिना वजह
कुछ भी नहीं होता
कुछ होता है
क्योंकि
वजह होती है ।
हौंसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया अज़ीज़ भाई ।
Deleteहर बात की कोई न कोई वजह होती है ... बहुत खूब
ReplyDeleteसंगीता जी बहुत शुक्रिया
Deleteआपके कोमेंट्स हमेशा प्रेरणा देते है।
बहुत आभार आपका ...
Sahi kaha,kuch bhi bewajah nhi hota,wajah humaare nazriye pr nirbhar karta h..
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