Monday 28 January 2013

पिता


 मैं जब भी डर जाता
आपके पास चला आता
आप समझ जाते
मुझे दुलारने लगते
निडर लोगों के किस्से बताते

जब भी मुझे
चीज़ें चाहिये होतीं
मैं आपके काम करने लगता
आप भाँप जाते
और कोशिश करते
ख़्वाहिश पूरी करने की

जब मुझसे गलती हो जाती
मैं रोने लगता
आप समझ जाते
विषय बदलकर
गलती से सबक लेने की
नसीहत देते

आज पिता बनने के बाद
अपने बच्चों  के लिए
चाहकर भी
आप जैसा नहीं बन सका  
बनता भी तो कैसे
आपसे बराबरी
कोई कर ही नहीं सकता
इस बात की ख़ुशी है मुझे
पर मैं
आपके काम नहीं आया
जैसा आप आये
इस बात का
अफ़सोस है मुझे ।

Saturday 5 January 2013

विकास बनाम इंसानियत – दर


रोज़ होती रही चर्चायें
बैठकों पे बैठकें
कार्यालयों से लेकर चौपालों तक
कारखानों से लेकर शेयर बाज़ारों तक
हर जगह
कोशिशें जारी हैं 
कैसे बढ़े
कितना बढ़े
कहाँ-कहाँ कितनी गुंजाईशें है
सभी लगे हैं
देश विकसित हो या विकासशील
या कि हो अविकसित
चिंतायें सबकी एक है
कैसे बढ़े विकास-दर
कैसे बढ़े व्यापार
बाज़ार भाव
कैसे बढ़े निर्यात 
फिर चाहे 
मौत का सामान ही क्यों न हो
व्यापार बढ़ना चाहिए
विकास-दर बढ़ती रहनी चाहिए 
और इंसानियत की दर 
घटते - घटते
इतनी घट गई
कि अब
अव्वल तो चर्चा नहीं होती
और जब होती है
तो किसी के पास
वक्त ही नहीं होता