Tuesday 31 December 2013

एक दिन बेटा नाम करेगा

पिता ने जब  सुना
शहर की पढ़ाई के बारे में
रख दिया गिरवी
पुश्तैनी खेत
और भेज दिया
शहर के बड़े हॉस्टल
अपने बेटे को
  
जब पढ़ानी थी, इंजीनियरिंग
पिता ने बेच दिया 
गाँव का पुश्तैनी मकान  

फिर जब
नौकरी नहीं मिली
और खड़ा करना चाहा
बेटे ने खुद का व्यवसाय
पिता ने बेच डाला
बचा-खुचा भी
ये सोच कर
एक दिन बेटा नाम करेगा ।

व्यवसाय चल पड़ा तो शादी भी कर दी
बड़ा नाम है, इंजीनियर साहब का
शहर के बड़े ठेकेदार भी हैं
पिता के साथ-साथ 
रोशन कर रहे हैं
गाँव का नाम भी
अरे!! बड़े फरमाबरदार  हैं
इंजीनियर साहब
अपने व्यस्त शिड्यूल से 
हर माह 
वक्त निकाल लेते हैं
वृद्ध आश्रम में
माँ-बाप से मिलने
सपरिवार ज़रूर जाते हैं।

Thursday 18 April 2013

किसका दोष है ??














रोज़ होती सड़क दुर्घटनायें

कभी ये, कभी वो

शिकार होते लोग

सब जानते हैं

समझते हैं

आज कोई

तो कल

हम भी हो सकते हैं शिकार

दुर्घटना तो आखिर दुर्घटना है



चलो मान लिया

गलती इसकी थी, या उसकी

जाँच का विषय है

पर घण्टों सड़क पर
तड़पती ज़िंदगी

मदद के लिए विनती करती

कभी इशारे से बुलाती

भीड़ से आस की उम्मीद लिए

हर बार आखिरी कोशिश करती  

लाश में तब्दील होती ज़िंदगी



किसका दोष है ??

इंसानों का  ?

या इंसानों के भेष में घूम रही

मशीनों का ....

Saturday 30 March 2013

होली (हाईकु)


हंसी ठिठोली
सबको मुबार‍क 
रंगों की होली ।

 बढ़ता मेल 
कोई गोरा न काला 
समझो न खेल ।

सावन बीता
तुम न आये प्रिये 
फागुन आया ।

होली का जोश
मन हुआ मयूर 
खोना न होश ।

होली का रंग
एक से मिले एक 
राजा न रंक ।

भीगी चुनर 
गोरी खड़ी लजाये 
झुकी नज़र ।

बुरा न मानो
होली की हुड़दंग 
अपना जानो ।

रंगों से सजे 
मस्ती में सराबोर
बच्चे क्या बूढ़े ।
 

Monday 11 March 2013

फासला


मेरे आने और तुम्हारे जाने के बीच
बस चंद कदमों का फासला रहा
न मै जल्दी आया कभी
न कभी तुमने इंतज़ार किया
ये फासला ही तो था
जिसे हमने
संजीदगी और ईमानदारी के साथ निभाया
फासले को
सिमटने नहीं दिया
और न ही
मिटने दिया
हम जुड़े रहे
फासले के साथ
बावजूद
तमाम मुश्किलों और तकलीफ़ों के
वो जिंदा रहा हमारे बीच
फासला बनकर  
और हम
मरते रहे, मरते रहे, मरते रहे
अपनेअपने अहम के साथ ...

Saturday 23 February 2013

वजह


रेगिस्तान में
रेत की चादर की तरह
मेरी ज़िंदगी भटकती रही
कभी यहाँ, कभी वहाँ
मैं ढूँढता रहा अपना ठिकाना
हवा बहा ले गई
जब चाहा जिधर चाहा
मेरा अपना ठिकाना
कुछ भी नहीं
मगर मालूम है मुझे
हर चीज़ का
अपना वज़ूद होता है
फिर चाहे नागफनी हो,
या हो नीम !
कोहिनूर हो,
या हो रेत !
बिना वजह
कुछ भी नहीं होता
गरीब न होते
अमीर को कौन पहचानता ?
प्यास न होती
पानी का महत्व कौन जानता ?
प्यार न होता
दिल की धड़कनें कौन सुनता ?
तुम न होते
प्यार क्या है, मैं कैसे जानता ?
बिना वजह
कुछ भी नहीं होता
कुछ होता है
क्योंकि
वजह होती है ।

Monday 28 January 2013

पिता


 मैं जब भी डर जाता
आपके पास चला आता
आप समझ जाते
मुझे दुलारने लगते
निडर लोगों के किस्से बताते

जब भी मुझे
चीज़ें चाहिये होतीं
मैं आपके काम करने लगता
आप भाँप जाते
और कोशिश करते
ख़्वाहिश पूरी करने की

जब मुझसे गलती हो जाती
मैं रोने लगता
आप समझ जाते
विषय बदलकर
गलती से सबक लेने की
नसीहत देते

आज पिता बनने के बाद
अपने बच्चों  के लिए
चाहकर भी
आप जैसा नहीं बन सका  
बनता भी तो कैसे
आपसे बराबरी
कोई कर ही नहीं सकता
इस बात की ख़ुशी है मुझे
पर मैं
आपके काम नहीं आया
जैसा आप आये
इस बात का
अफ़सोस है मुझे ।