Tuesday 16 October 2012

हाईकु


तुमने ओढ़ी
आसुओं की चादर
समाज खुश

ज़ख़्मों को धोना
मलहम लगाना
चलते जाना

सबकी खुशी
आँसुओं पे न जाना
फर्ज़ निभाना

पिया घर जा
आँसुओं को न देख
बावरे नैन

खुश रहना
कभी याद न आना
साथ निभाना 


सब खामोश
आँसू बहें हज़ार
सफर जारी 

8 comments:

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    1. बहुत शुक्रिया रीना जी
      पहली कोशिश थी
      सोचा की हाईकु पर भी हाथ आज़माते हैं ।

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  2. बहुत खूब...यूँ ही हाथ आजमाते रहिए |

    सादर |

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    1. बस आप लोगों से प्रेरित हो जाते है।
      इसी तरह मोहब्बत बनाये रखें ।

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  3. बहुत शुक्रिया अमृता जी ।

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  4. बहुत आभार, हमने बड़ी हिम्मत करके लिखा था लिखना सार्थक हुआ |

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