Saturday 15 September 2012

सर जी

तुमने सोचा तो बहुत था
हमें बेड़ियों में बाँध
अपने इशारों पर नचाओगे
चाबुक दिखाकर डराओगे

तुम आगे चलोगे
हम तुम्हारे पीछे
कटोरा लेकर दौड़ेंगे
जब तुम्हारा जी चाहेगा
तुम अपनी जूठन से
कुछ टुकड़े
हमें डाल दोगे
और हम
ख़ुश होकर
तुम्हारा गुणगान करेंगे
तुम्हारी जयकार करेंगे

दुनिया को अपने इशारे पर
नचाने का ख़्वाब लिए
तुम जब दहाड़ोगे
हम दुबक जायेंगे
जान की दुहाई मांगेंगे
तुम हँसोगे
हम काँप जायेंगे
तुम बटन दबाओगे
हम गायब हो जायेंगे
तुम जाम छलकाओगे
हम तुम्हारा मन बहलाएंगे

तुमने सोंचा तो बहुत था
पर ऐसा हो सका
क्योंकि सर जी !
हम चलना जानते है
बैसाखी के बिना 

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