Wednesday 26 September 2012

बेटियाँ

सुबह उठती हैं
उन्हें पता है
अपनी जिम्मेदारियाँ
पूछतीं नहीं क्या करना है
बस लग जाती हैं 
काम में
रोज़ की तरह
सोचतीं नहीं
ठंड है या गर्मी
धूप है या बारिश
बस रोज़ की तरह
लग जाती हैं
सब-कुछ सँवारने-संभालने में
उन्हें बचपन से
सब-कुछ मालूम है
कुछ माँगती हैं
ज़िद ही करती हैं
उन्होंने अपनी हदें
पहले से
तय कर ली हैं

बेटियाँ
पूछने से पहले
बताने को तैयार
माँगने से पहले
समान तैयार
उन्हें पता नहीं है
कर भी पायेँगीं या नहीं
हाँ कोशिश ज़रूर करती हैं
कर पाये
ख़ुद से
शिकायत भी करती हैं

बेटियाँ
अपने लिए
कुछ नहीं माँगतीं
भाई के खिलौनों को छूकर
ख़ुश हो लेती हैं  
अपने लिए माँगने से
डरती भी हैं

बेटियाँ
खुशियाँ नहीं माँगतीं
खुशियाँ देना चाहती हैं
ख़ुश रहने से ज़्यादा
खुशियाँ बाँटना चाहती हैं
बेटियाँ
भाई से बराबरी नहीं चाहतीं
उनके साथ
चलना चाहती हैं
उनका साथ
देना चाहती हैं
सबको ख़ुश
रखना चाहती हैं
सबके काम
आना चाहती हैं

Monday 24 September 2012

नये पत्ते


पेड़ की सूखी डालों पर
आ रहे हैं
नये पत्ते
जो फलेंगे फूलेंगे
और फैल जायेंगे
विशाल पेड़ों के पत्तों से ज्यादा
तब तुम देखते रहना
इन्हे
न तो तूफ़ान गिरा पाएगा
और न ही अकाल सूखा पाएगा
क्योंकि वे
जान गए हैं प्रकृति के रहस्यों को
रहते-रहते
सूखी डालों के साथ ।

Thursday 20 September 2012

ज़िक्र

कभी-कभी सोचता हूँ
कुछ लिखूँ
अपनी ज़िंदगी के बारे में
मगर
छुपा लेना चाहता हूँ
उन पंक्तियों को
जिनमें
तुम्हारा ज़िक्र आता है
बस इसीलिये
कुछ भी नहीं लिख पाता
क्योंकि
हर पंक्तियों में
तुम्हारा
ज़िक्र आता है ।

Wednesday 19 September 2012

हमारी ज़िंदगी

ज़िंदगी ने जो दिया
जितना दिया
अच्छा दिया
ज़िंदगी को हमने
क्या दिया
इस बारे में
कभी सोचा ही नहीं

ख़ुश होने के मौसम
ज़िंदगी में बहुत आये
पर हमें तो
गम तलाशने की आदत है
कभी दूसरों की खुशियों में
कभी अपनी गलतियों पर
हम रोते
सिसकते रहे
सिर्फ़ अपने ही बारे में
सोचते-सोचते
सब-कुछ
अपने लिए
बटोरने की चाह लिए
अपनी और अपनों की
सिफ़ारिशें करते-करते
दूसरों के हक
कितने छीनें
कितने लूटे
जानने की कोशिश
कभी की भी नहीं
ख़ुद से आगे
निकल जाने की चाह लिए
कहाँ-कहाँ गिरे
सोचा ही नहीं

ईश्वर को दोष देते-देते
किस्मत का रोना रोते-रोते
अपने गिरहबान में झाँकने की
न तो फ़ुरसत है
और न ही हिम्मत
बस चले जा रहे हैं
अंजाने सफ़र की तलाश में
फिर दिखावे के लिए
जितना चाहें
होंठ चौड़े कर लें
दिल में पहाड़ सा बोझ लिए
हम ख़ुद को बेवकूफ़ बना रहे हैं ।

Monday 17 September 2012

सरकारी अनाज

 (एक)
खामोश !
हर साल  की तरह
इस साल भी
अनाज सड़ रहा है।
अनुमान है
इस दफा
पिछला रेकॉर्ड भी टूटेगा

खबरदार !
किसी गरीब ने
आँख उठा कर  देखने की
जुर्रत भी की।
सरकारी अनाज है,
मतलब समझते हैं ,
पाँच-दस साल से
कम की सज़ा नहीं होगी
जो एक मुट्ठी भी
लेने की गुस्ताखी की |
 
    (दो)

चाय की चुस्कियों के बीच
सुस्ताते लम्हों में
पलटते हुये अख़बार के पन्नों के बीच
फिर वही सुर्खियाँ
बारिश में सड़ता
सरकारी अनाज
हर साल की तरह
इस साल भी

चाय के ख़त्म होते-होते
अख़बार के पन्नों के बीच
समस्याएँ दब जाती हैं
वर्ष बादल जाता है
सुर्खियाँ अब भी वही हैं  
हर साल की बारिश में।

 
  (तीन)

लोग भूखे मरें
तो अपनी बला से
दो दिन ज़्यादा जी लेंगे
तो कौन सा करोड़पति बन जायेंगे
या सरकारी नौकरियां पा लेंगे
उन्हें तो भटकना ही है
सड़कों और गलियों में
मरना ही है बाढ़ और सूखे से,
फिर सरकारी अनाज पर
बुरी नज़र डालें

खबरदार !
एक दाना भी चोरी जाने पाये
वजन और गिनती पूरी होनी चाहिए
कम हो
पत्थर कंकड़ मिला देना
और कोई माँगने आए
पुलीस में पकड़वा देना
पाँच-दस धरायें लगवाकर
दो-चार साल के लिए
अन्दर करवा देना
आखिर किसी की मजाल
सरकारी अनाज पर
बुरी नज़र डाले
लोग भूखे मरें
तो अपनी बाला से

Saturday 15 September 2012

सर जी

तुमने सोचा तो बहुत था
हमें बेड़ियों में बाँध
अपने इशारों पर नचाओगे
चाबुक दिखाकर डराओगे

तुम आगे चलोगे
हम तुम्हारे पीछे
कटोरा लेकर दौड़ेंगे
जब तुम्हारा जी चाहेगा
तुम अपनी जूठन से
कुछ टुकड़े
हमें डाल दोगे
और हम
ख़ुश होकर
तुम्हारा गुणगान करेंगे
तुम्हारी जयकार करेंगे

दुनिया को अपने इशारे पर
नचाने का ख़्वाब लिए
तुम जब दहाड़ोगे
हम दुबक जायेंगे
जान की दुहाई मांगेंगे
तुम हँसोगे
हम काँप जायेंगे
तुम बटन दबाओगे
हम गायब हो जायेंगे
तुम जाम छलकाओगे
हम तुम्हारा मन बहलाएंगे

तुमने सोंचा तो बहुत था
पर ऐसा हो सका
क्योंकि सर जी !
हम चलना जानते है
बैसाखी के बिना 

चिड़िया

बरगद के पेड़ पर
बना रही थी चिड़िया
देर तक
घोंसला
भीग कर पानी में
भूल कर भूख को

कुछ दिनों बाद
मैंने देखा
चोंच में दबाकर
लाते हुये दाना
चिड़िया को

कुछ दिनों बाद
मैंने सिखाते देखा
बच्चों को उड़ना
चिड़िया द्वारा

और कुछ दिनों बाद
उड़ गए बच्चे
मिल गए
दूसरे पक्षियों के साथ
रह गया
वही पेड़
वही चिड़िया |